मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो।
कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो।
कदम कदम पे चट्टानें खड़ी रहें,
लेकिन जो चल निकलते हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते।
हवाएँ कितना भी टकराएँ आंधियाँ बनकर,
मगर घटाओं के परछम कभी नहीं झुकते।
मेरे नदीम मेरे हमसफर .....
हर एक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं, मगर
हर एक तलाश मुरादों के रंग लाती है।
हज़ारों चांद सितारों का खून होता है
तब एक सुबह फिज़ाओं पे मुस्कुराती है।
मेरे नदीम मेरे हमसफर ....
जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते
वो ज़िन्दगी में नया रंग ला नहीं सकते।
जो रास्ते के अन्धेरों से हार जाते हैं
वो मंज़िलों के उजालों को पा नहीं सकते।
मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो।
कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो।
साहिर लुधियानवि [संकलन]
Monday, December 10, 2007
चुप सी लगी है
चुप सी लगी है।
अन्दर ज़ोर
एक आवाज़ दबी है।
वह दबी चीख
निकलेगी कब?
ज़िन्दगी आखिर
शुरू होगी कब?
कब?
खुले मन से
हंसी कब आएगी?
इस दिल में
खुशी कब खिलखिलाएगी?
बरसों इस जाल में बंधी,
प्यास अभी भी है।
अपने पथ पर चल पाऊँगी,
आस अभी भी है।
पर इन्त्ज़ार में
दिल धीरे धीरे मरता है
धीरे धीरे पिसता है मन,
शेष क्या रहता है?
डर है, एक दिन
यह धीरज न टूट जाए
रोको न मुझे,
कहीं ज्वालामुखी फूट जाए।
वह फूटा तो
इस श्री सृजन को
कैसे बचाऊँगी?
विश्व में मात्र एक
किस्सा बन रह जाऊँगी।
समय की गहराइयों में
खो जाऊँगी।
नीलकमाल [संकलन]
अन्दर ज़ोर
एक आवाज़ दबी है।
वह दबी चीख
निकलेगी कब?
ज़िन्दगी आखिर
शुरू होगी कब?
कब?
खुले मन से
हंसी कब आएगी?
इस दिल में
खुशी कब खिलखिलाएगी?
बरसों इस जाल में बंधी,
प्यास अभी भी है।
अपने पथ पर चल पाऊँगी,
आस अभी भी है।
पर इन्त्ज़ार में
दिल धीरे धीरे मरता है
धीरे धीरे पिसता है मन,
शेष क्या रहता है?
डर है, एक दिन
यह धीरज न टूट जाए
रोको न मुझे,
कहीं ज्वालामुखी फूट जाए।
वह फूटा तो
इस श्री सृजन को
कैसे बचाऊँगी?
विश्व में मात्र एक
किस्सा बन रह जाऊँगी।
समय की गहराइयों में
खो जाऊँगी।
नीलकमाल [संकलन]
Sunday, December 2, 2007
तेरे आने का धोखा सा रह है
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[ संकलन ]
Saturday, December 1, 2007
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाये
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Friday, November 30, 2007
वो रुला के हंस न पाया देर तक
वो रुला कर हँस ना पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
भुूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक
ख़ुद ब ख़ुद, बे-साखता मैं हँस परा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गन-गुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रह्ती है ना छाया देर तक
कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनु जगमगाया देर तक
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ख़ुद बा ख़ुद : अपने ही आप
बे-साखता : ख़ुद ब ख़ुद
नवाज़ देओबन्दि
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जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
भुूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक
ख़ुद ब ख़ुद, बे-साखता मैं हँस परा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गन-गुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रह्ती है ना छाया देर तक
कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनु जगमगाया देर तक
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ख़ुद बा ख़ुद : अपने ही आप
बे-साखता : ख़ुद ब ख़ुद
नवाज़ देओबन्दि
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