Friday, November 30, 2007

वो रुला के हंस न पाया देर तक

वो रुला कर हँस ना पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक

भुूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक

ख़ुद ब ख़ुद, बे-साखता मैं हँस परा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक

गन-गुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रह्ती है ना छाया देर तक

कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनु जगमगाया देर तक

--------------------------------------------
ख़ुद बा ख़ुद : अपने ही आप
बे-साखता : ख़ुद ब ख़ुद

नवाज़ देओबन्दि
---------------