वो रुला कर हँस ना पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
भुूलना चाहा कभी उस को अगर
और भी वो याद आया देर तक
ख़ुद ब ख़ुद, बे-साखता मैं हँस परा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गन-गुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रह्ती है ना छाया देर तक
कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनु जगमगाया देर तक
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ख़ुद बा ख़ुद : अपने ही आप
बे-साखता : ख़ुद ब ख़ुद
नवाज़ देओबन्दि
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