Sunday, December 2, 2007

तेरे आने का धोखा सा रह है


तेरे आने का धोखा सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है

अजब है रात से आँखों का आलम,
ये दरिया रात भर चऱ्ह्ता रहा है

सुना है रात भर बरसा है बादल,
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है?

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का,
जो पिछली रात से याद रहा है

किसे ढूँढोगे इन गलियों मेंनासिर”?
चलो अब घर छलें, दिन जा रहा है

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[ संकलन ]